कब , क्या और कितना भोजन करना चाहिए?
नमस्ते,
आज हम बात करेंगे हमें कब ,क्या खाना चाहिए कितना खाना चाहिए इस बात का निर्धारण कैसे होता है। महर्षि वाग्बट्ट ने कयी वर्षों तक इस पर अध्ययन किया और जानने का प्रयास किया आज मैं इसी के बारे में आपको बताने जा रहा हूँ।
हमारा शरीर कभी भी कुछ भी खाने के लिए नहीं बना है खाने का सही समय और सही नियम जानना बहुत आवश्यक है।
हमारे शरीर के सभी अंगों जैसे लीवर, किडनी, गुर्दे, हर्ट...आदि के कार्य करने का एक निश्चित समय होता है जिस समय वह सर्वाधिक सक्रिय होता है।
जैसे हमारा हृदय व्रम्ह मुहूर्त के 2.5 घण्टे पहले तक सर्वाधिक सक्रिय होता है इसीलिए सर्वाधिक हृदय घात इसी समय होता है। ठीक इसी प्रकार हमारी जठराग्नी भी सूर्योदय के बाद सक्रिय होती है और सूर्योदय के 2.5 घण्टे तक सर्वाधिक सक्रिय रहता है इस समय आप जो भी भोजन ग्रहण करेंगे आसानी से पूर्णतः पच जाता है।
पूर्ण रूप से पचा हुआ भोजन से रक्त, मांस, मज्जा, मेंद, वीर्य आदि का निर्माण शरीर में होता है।
जठर शरीर की पाचन क्रिया का प्रारम्भ है जिसमें जिसमें हमारी द्वारा खाया गया भोजन एकत्रित होता है जैसे ही हम भोजन का ग्रहण आरम्भ करते हैं, हमारी जठराग्नी प्रदीप्त हो उठती है और जठर रस का हमारे भोजन में मिलकर भोजन को पचाना शुरु कर देता है।
हमारा जठर सूर्योदय से 2.5 घण्टे बाद तक सबसे ज्यादा सक्रिय होता है इस समय हमारे द्वारा खाया एक-एक अन्न पूर्णतः पच कर शरीर में मांस, मज्जा, मेंद, रक्त वीर्य आदि के रूप मे परिवर्तित होकर शरीर को स्वस्थ, बलवान, वीर्यवान, ओजपूर्ण बनाकर आपको दीर्घायु बनाता है।
महर्षि वाग्बट्ट जी ने अपने अध्ययन में यह जानने का प्रयास किया कि हमारा कब किस प्रकार सक्रिय रहता है। लम्बे अध्ययन के बाद उन्हें यह जानने में सफलता मिली कि हमारा जठर सूर्योदय के साथ सक्रिय होता है और सूर्यास्त के साथ ही शिथिल या मंद हो जाता है किन्तु सर्वाधिक सक्रिय सूर्योदय के 2.5 घण्टे बाद तक ही रहता है इसलिए हमें 9:30 बजे तक अपना पूर्ण भोजन ग्रहण कर लेना चाहिए।
महर्षि वाग्बट्ट लिखते हैं कि इस समय हमें अपना सबसेप्रिय भोजन खूब छक कर खाना चाहिए। वे कहते हैं कि हमारे द्वारा किया गया भोजन हमारे इच्छा अनुरूप नहीं है अर्थात हमारा भोजन हमारी इच्छा को तृप्त नहीं कर रहा है तो यह मानसिक विकृत को जन्म देगा। इच्छा की संतुष्टि ही भोजन का पहला धर्म है।
सुबह के भोजन के बाद ताजे मौसमी फलों के जूस, गन्ने का रस पीना सर्वोत्तम है। भोजन पूर्व या पश्चात पानी भूलकर भी न ग्रहण करें ऐसा करने से भोजन विष युक्त हो जाता है
दोपहर का भोजन कब और कितना करना चाहिए
महर्षि ने अपने अध्ययन में यह जाना कि हमारा जठर क्रियाशीलता में सक्रियता में कमी का प्रदर्शन कर रहा है अर्थात अब हमें भोजन में कमी की भी आवश्यकता है। वे कहते है कि अब हमें दोपहर का सुबह के भोजन का आधा कर देना चाहिए अर्थात यदि आप सुबह में 6 रोटी खाते हो तो दोपहर में तीन ही रोटी खाएं। दोपहर के भोन के साथ छाछ दही की लस्सी का सेवन सर्वोत्तम है।
रात्रि का भोजन
महर्षि लिखतें है कि रात्रि का भोजन दिन डूबने से 40 मिनट पूर्व ही कर लेना चाहिए क्योंकि इस समय हमारी जठर दीपक की लौ के समान प्रतिक्रिया करता है और एट बार पुनः सक्रियहो जाता है इस समय हमें हल्के सुपाच्य भोजन का सेवन करें प्रोटीन तथा भारी भोजन के सेवन से बचें। रात्रि का भोजन सुबह के भोजन का एक तिहाई ही होना चाहिए।
रात्रि भोजन के बाद केवल दूध का ही सेवन करना उत्तम होता है। रात्रि में दूध का सेवन करना चाहिए।
कुछ विशेष
हम भारत में रहते हैं भारत एक गर्म जलवायु का देश है यह प्रक्रिया भारत के संदर्भ में लागू होती ठण्ढे प्रदेशों के सन्दर्भ में यह नियम बदल जाता है साथ ही पहाड़ी प्रदेशों में भी इस नियम में 2.5 घण्टे अधिक समय बाद तक जठर की सक्रियता रहती है।
ध्यान रहे हमें कभी भी कुछ भी नहीं खाना है अन्यथा अनावश्यक परेशानियों से रूबरू होना पड़ जाएगा।
धन्यवाद।
।।जय हिन्द, जय भारत, स्वस्थ भारत।।
नमस्ते,
आज हम बात करेंगे हमें कब ,क्या खाना चाहिए कितना खाना चाहिए इस बात का निर्धारण कैसे होता है। महर्षि वाग्बट्ट ने कयी वर्षों तक इस पर अध्ययन किया और जानने का प्रयास किया आज मैं इसी के बारे में आपको बताने जा रहा हूँ।
हमारा शरीर कभी भी कुछ भी खाने के लिए नहीं बना है खाने का सही समय और सही नियम जानना बहुत आवश्यक है।
हमारे शरीर के सभी अंगों जैसे लीवर, किडनी, गुर्दे, हर्ट...आदि के कार्य करने का एक निश्चित समय होता है जिस समय वह सर्वाधिक सक्रिय होता है।
जैसे हमारा हृदय व्रम्ह मुहूर्त के 2.5 घण्टे पहले तक सर्वाधिक सक्रिय होता है इसीलिए सर्वाधिक हृदय घात इसी समय होता है। ठीक इसी प्रकार हमारी जठराग्नी भी सूर्योदय के बाद सक्रिय होती है और सूर्योदय के 2.5 घण्टे तक सर्वाधिक सक्रिय रहता है इस समय आप जो भी भोजन ग्रहण करेंगे आसानी से पूर्णतः पच जाता है।
पूर्ण रूप से पचा हुआ भोजन से रक्त, मांस, मज्जा, मेंद, वीर्य आदि का निर्माण शरीर में होता है।
जठर शरीर की पाचन क्रिया का प्रारम्भ है जिसमें जिसमें हमारी द्वारा खाया गया भोजन एकत्रित होता है जैसे ही हम भोजन का ग्रहण आरम्भ करते हैं, हमारी जठराग्नी प्रदीप्त हो उठती है और जठर रस का हमारे भोजन में मिलकर भोजन को पचाना शुरु कर देता है।
हमारा जठर सूर्योदय से 2.5 घण्टे बाद तक सबसे ज्यादा सक्रिय होता है इस समय हमारे द्वारा खाया एक-एक अन्न पूर्णतः पच कर शरीर में मांस, मज्जा, मेंद, रक्त वीर्य आदि के रूप मे परिवर्तित होकर शरीर को स्वस्थ, बलवान, वीर्यवान, ओजपूर्ण बनाकर आपको दीर्घायु बनाता है।
महर्षि वाग्बट्ट जी ने अपने अध्ययन में यह जानने का प्रयास किया कि हमारा कब किस प्रकार सक्रिय रहता है। लम्बे अध्ययन के बाद उन्हें यह जानने में सफलता मिली कि हमारा जठर सूर्योदय के साथ सक्रिय होता है और सूर्यास्त के साथ ही शिथिल या मंद हो जाता है किन्तु सर्वाधिक सक्रिय सूर्योदय के 2.5 घण्टे बाद तक ही रहता है इसलिए हमें 9:30 बजे तक अपना पूर्ण भोजन ग्रहण कर लेना चाहिए।
महर्षि वाग्बट्ट लिखते हैं कि इस समय हमें अपना सबसेप्रिय भोजन खूब छक कर खाना चाहिए। वे कहते हैं कि हमारे द्वारा किया गया भोजन हमारे इच्छा अनुरूप नहीं है अर्थात हमारा भोजन हमारी इच्छा को तृप्त नहीं कर रहा है तो यह मानसिक विकृत को जन्म देगा। इच्छा की संतुष्टि ही भोजन का पहला धर्म है।
सुबह के भोजन के बाद ताजे मौसमी फलों के जूस, गन्ने का रस पीना सर्वोत्तम है। भोजन पूर्व या पश्चात पानी भूलकर भी न ग्रहण करें ऐसा करने से भोजन विष युक्त हो जाता है
दोपहर का भोजन कब और कितना करना चाहिए
महर्षि ने अपने अध्ययन में यह जाना कि हमारा जठर क्रियाशीलता में सक्रियता में कमी का प्रदर्शन कर रहा है अर्थात अब हमें भोजन में कमी की भी आवश्यकता है। वे कहते है कि अब हमें दोपहर का सुबह के भोजन का आधा कर देना चाहिए अर्थात यदि आप सुबह में 6 रोटी खाते हो तो दोपहर में तीन ही रोटी खाएं। दोपहर के भोन के साथ छाछ दही की लस्सी का सेवन सर्वोत्तम है।
रात्रि का भोजन
महर्षि लिखतें है कि रात्रि का भोजन दिन डूबने से 40 मिनट पूर्व ही कर लेना चाहिए क्योंकि इस समय हमारी जठर दीपक की लौ के समान प्रतिक्रिया करता है और एट बार पुनः सक्रियहो जाता है इस समय हमें हल्के सुपाच्य भोजन का सेवन करें प्रोटीन तथा भारी भोजन के सेवन से बचें। रात्रि का भोजन सुबह के भोजन का एक तिहाई ही होना चाहिए।
रात्रि भोजन के बाद केवल दूध का ही सेवन करना उत्तम होता है। रात्रि में दूध का सेवन करना चाहिए।
कुछ विशेष
हम भारत में रहते हैं भारत एक गर्म जलवायु का देश है यह प्रक्रिया भारत के संदर्भ में लागू होती ठण्ढे प्रदेशों के सन्दर्भ में यह नियम बदल जाता है साथ ही पहाड़ी प्रदेशों में भी इस नियम में 2.5 घण्टे अधिक समय बाद तक जठर की सक्रियता रहती है।
ध्यान रहे हमें कभी भी कुछ भी नहीं खाना है अन्यथा अनावश्यक परेशानियों से रूबरू होना पड़ जाएगा।
धन्यवाद।
।।जय हिन्द, जय भारत, स्वस्थ भारत।।
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