ये चार नियम अपना लीजिये आप जीवन में कभी बीमार नहीं पड़ोगे
नमस्ते,
आज हम महर्षि वाग्भट्ट के द्वारा बताए चार नियमों पर बात करेंगे जिनका पालन सभी मनुष्यों के लिए आवश्यक है अगर जीवन मेंं आप कभी भी बीमार नहीं पड़ना चाहते हैं तो...। पर उससे पहले कुछ और बाते जो आपको जानना चाहिए उस पर भी बात कर लें।
जब हम भारत में चिकित्सा पद्धति की बात करते हैं तो इसका सीधा संबंध आयुर्वेद से होता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में गहन अध्ययन के बताया गया कि हमारे शरीर में तीन तरह के विकार हैं - वात, पित्त तथा कफ। इन्हें ही त्रीदोष कहा जाता है। शरीर में इनका संतुलन ही जीवन है तथा त्री दोष में असंतुलन बिमारीयों , अस्वस्थ जीवन तथा मृत्यु का कारण बनती है।
समय पर भारत भूमि पर अनेकों आयुर्वेदाचार्यों का उदय हुआ जिन्होंने भारत भूमि लोगों में होने वाली बिमारीयों का गहन अध्ययन किया तथा उनका सरलतम आयुर्वेदिक उपचार भी बताया।उन्हीं आयुर्वेद आचार्यों में से हैं महर्षि वाग्भट्ट जिन्होंने अपनी पुस्तक "अष्टांगहृदयम" तथा "अष्टांगसंग्रहम" में स्वस्थ्य जीवन के लिये उपयोगी 7000 सूत्रों की रचना जिसमें से सिर्फ चार नियम ही आपको जीवन भर स्वस्थ तथा नीरोगी बना देंगे।
हमारे शरीर में वात पित्त और कफ के असंतुलन से ही समस्त बिमारीयों का जन्म से सभी बिमारीयों का जन्म होता है। वात के असंतुलन से 80 से अधिक बिमारी, पित्त के असंतुलन से 45से अधिक बिमारी और कफ के असंतुलन से 25से अधिक बिमारीयों का जन्म होता है। किन्तु महर्षि वाग्बट्ट जी के बताए मात्र इन चार नियमों का पालन करके आप अपने वाप, पित्त और कफ को संतुलित रख कर सभी बिमारीयों से पूर्ण सुरक्षित रह सकते आपको जीवन में कभी भी डाक्टर के पास जाने आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
प्रथम नियम - खाना खाने के तुरन्त बाद कभी भी पानी न पीए
महर्षि वाग्बट्ट अपने सूत्र में लिखते हैं -"भोजनान्ते विषम वारी।" अर्थात भोजन के अन्त में जल पीना विष के समान है। ऐसा क्यों है- इसका कारण बताते हुए लिखते हैं कि जब हम खाना खाते है तो भोजन हमारे जठर में भार में एकत्रित हो जाता है ।जैसे ही हमारा खाया हुआ खाना हमारे जठर में पहुंचता है हमारी जठर में अग्नि पज्वलित हो जाती है जठराग्नी प्रज्वलित होने पर जठर रस का श्राव होता है जिसे पूर्ण पाचक रस कहा जाता है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि हमारा भोजन पूर्ण रूप से पच नहीं जाता।
क्या होता है जब हम भोजन के तुरन्त बाद पानी पीते हैं? जिस प्रकार आग में पानी पड़ने से वह बुझ जाती है ठीक उसी प्रकार खाने के बाद जैसे ही पानी पीते हैं हमारी जठराग्नी भी बुझ जाती है और जठर रस का श्राव बन्द हो जाता है। ऐसा होने पर हमारे भोजन पचने की क्रिया में अवरोध उत्पन्न हो जाता है। अब हमारा खाना पचने बजाय सड़ना प्रारंभ हो जाता है।
अब आप दो प्रश्न पूछ सकते हैं- 1) पानी कितनी देर बाद पीए? 2) क्या खाना खाने से पहले पानी पी सकते हैं?
वाग्बट्ट जी लिखते है कि खाना खाने के एक घण्टे बाद ही या हो सके तो 1 घण्टे 48मिनट बाद ही पानी पीए। और खाना खाने के कम से कम 40-48 मिनट पहले ही भरपेट पानी का सेवन करना चाहिए इससे भूख अच्छी लगती है।
अब प्रश्न उठता है कि पानी न पीए तो क्या कुछ और पीया जा सकता है। हा आप भोजन के तुरन्त बाद मौसमी फलों का रस या छाछ/लसी या दूध पी सकते हैं।
इसमें भी ध्यान रहे कि सुबह के भोजन के बाद फल का जूस, गन्ने का जूस, नींबू मिला पानी आदि पीना सर्वोत्तम है। दोपहर के भोजनेपरान्त छाछ या लस्सी पीना सर्वोत्तम है और रात्रि भोजन के बाद दूध पीना सर्वोत्तम है।
द्वितीय नियम- कभी भी पानी घूँट -घूँट(सिप करके ) पीए
कभी भी एक सास में या लगातार पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि जिस तरह से गर्म चाय को चुस्की लेकर घूँट घूँट पीते हैं पानी भी ठी इसी तरह पीना चाहिए।
प्रश्न है कि ऐसा क्यों- इसका उत्तर देते हुए लिखते हैं कि हमारे मुख में लार बनती है जव हम घूँट भरकर पानी पीते हैं तो हमारी लार पानी में मिल जाती हैं लार मिला हुआ पानी हमारी पेट की अम्लता को समाप्त करके भोजन को पचने में मदत करता है।
किन्तु ऐसा न करने पर पिया हुआ पानी निरर्थक हो जाता है। अतः जब भी पानी पीए घूँट - घूँट करके पीए।
तृतीय नियम- कभी भी ठण्डा पानी नहीं पीना
फ्रिज , बर्फ, वाटरकूलर आदि किसी माध्यम से ठण्डा हुआ पानी कभी भी न पीए केवल मिट्टी के घड़े का पानी ही पीना चाहिए, वो भी केवल मई और जून माह में। ऐसा क्यों हमारे शरीर का ताप गर्म है जब हम ठंडा पानी पीते हैं तो शरीर को उस पानी को गर्म करने के लिए खून की उर्जा लेनी पड़ती है जिससे हमारी शरीर की उर्जा का अनावश्यक ही ह्रास होता है ऐसी स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है और शरीर मोटापा सहित अनावश्यक बिमारीयों का जन्म हो जाता है।
चतुर्थ नियम- सुबह उठते ही भर पेट पानी पीने की आदत डाले
महर्षि वाग्बट्ट जी कहते हैं कि सुबह ऊषापान अर्थात सूर्योदय से पूर्व उठकर 2-3 गिलास ताजे गुनगुने जल का सेवन करें। जब हम सुबह उठकर पानी पीते हैंं तो इससे हमारी आँत की दिवारों का मल पानी के साथ घुल जाता है और हमारे पेट में एकत्रित अम्ल न्यूट्रल होकर मलासय से बाहर निकल जाता है और हमारी आँत स्वच्छ हो जाती है जिससे शरीर में ताजगी का अनुभव होता है। और बहुत सारी बिमारीयों से सुरक्षा होती है।
अगर हम सभी इन चार नियमों का पालन करते हैं तो त्रिदोष के प्रकोप से सदैव सुरक्षित रहेंगे और कभी भी किसी भी दवा या डाक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
धन्यवाद
।।जय हिन्द, जय भारत, स्वस्थ भारत।।
नमस्ते,
आज हम महर्षि वाग्भट्ट के द्वारा बताए चार नियमों पर बात करेंगे जिनका पालन सभी मनुष्यों के लिए आवश्यक है अगर जीवन मेंं आप कभी भी बीमार नहीं पड़ना चाहते हैं तो...। पर उससे पहले कुछ और बाते जो आपको जानना चाहिए उस पर भी बात कर लें।
जब हम भारत में चिकित्सा पद्धति की बात करते हैं तो इसका सीधा संबंध आयुर्वेद से होता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में गहन अध्ययन के बताया गया कि हमारे शरीर में तीन तरह के विकार हैं - वात, पित्त तथा कफ। इन्हें ही त्रीदोष कहा जाता है। शरीर में इनका संतुलन ही जीवन है तथा त्री दोष में असंतुलन बिमारीयों , अस्वस्थ जीवन तथा मृत्यु का कारण बनती है।
समय पर भारत भूमि पर अनेकों आयुर्वेदाचार्यों का उदय हुआ जिन्होंने भारत भूमि लोगों में होने वाली बिमारीयों का गहन अध्ययन किया तथा उनका सरलतम आयुर्वेदिक उपचार भी बताया।उन्हीं आयुर्वेद आचार्यों में से हैं महर्षि वाग्भट्ट जिन्होंने अपनी पुस्तक "अष्टांगहृदयम" तथा "अष्टांगसंग्रहम" में स्वस्थ्य जीवन के लिये उपयोगी 7000 सूत्रों की रचना जिसमें से सिर्फ चार नियम ही आपको जीवन भर स्वस्थ तथा नीरोगी बना देंगे।
हमारे शरीर में वात पित्त और कफ के असंतुलन से ही समस्त बिमारीयों का जन्म से सभी बिमारीयों का जन्म होता है। वात के असंतुलन से 80 से अधिक बिमारी, पित्त के असंतुलन से 45से अधिक बिमारी और कफ के असंतुलन से 25से अधिक बिमारीयों का जन्म होता है। किन्तु महर्षि वाग्बट्ट जी के बताए मात्र इन चार नियमों का पालन करके आप अपने वाप, पित्त और कफ को संतुलित रख कर सभी बिमारीयों से पूर्ण सुरक्षित रह सकते आपको जीवन में कभी भी डाक्टर के पास जाने आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
प्रथम नियम - खाना खाने के तुरन्त बाद कभी भी पानी न पीए
महर्षि वाग्बट्ट अपने सूत्र में लिखते हैं -"भोजनान्ते विषम वारी।" अर्थात भोजन के अन्त में जल पीना विष के समान है। ऐसा क्यों है- इसका कारण बताते हुए लिखते हैं कि जब हम खाना खाते है तो भोजन हमारे जठर में भार में एकत्रित हो जाता है ।जैसे ही हमारा खाया हुआ खाना हमारे जठर में पहुंचता है हमारी जठर में अग्नि पज्वलित हो जाती है जठराग्नी प्रज्वलित होने पर जठर रस का श्राव होता है जिसे पूर्ण पाचक रस कहा जाता है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि हमारा भोजन पूर्ण रूप से पच नहीं जाता।
क्या होता है जब हम भोजन के तुरन्त बाद पानी पीते हैं? जिस प्रकार आग में पानी पड़ने से वह बुझ जाती है ठीक उसी प्रकार खाने के बाद जैसे ही पानी पीते हैं हमारी जठराग्नी भी बुझ जाती है और जठर रस का श्राव बन्द हो जाता है। ऐसा होने पर हमारे भोजन पचने की क्रिया में अवरोध उत्पन्न हो जाता है। अब हमारा खाना पचने बजाय सड़ना प्रारंभ हो जाता है।
अब आप दो प्रश्न पूछ सकते हैं- 1) पानी कितनी देर बाद पीए? 2) क्या खाना खाने से पहले पानी पी सकते हैं?
वाग्बट्ट जी लिखते है कि खाना खाने के एक घण्टे बाद ही या हो सके तो 1 घण्टे 48मिनट बाद ही पानी पीए। और खाना खाने के कम से कम 40-48 मिनट पहले ही भरपेट पानी का सेवन करना चाहिए इससे भूख अच्छी लगती है।
अब प्रश्न उठता है कि पानी न पीए तो क्या कुछ और पीया जा सकता है। हा आप भोजन के तुरन्त बाद मौसमी फलों का रस या छाछ/लसी या दूध पी सकते हैं।
इसमें भी ध्यान रहे कि सुबह के भोजन के बाद फल का जूस, गन्ने का जूस, नींबू मिला पानी आदि पीना सर्वोत्तम है। दोपहर के भोजनेपरान्त छाछ या लस्सी पीना सर्वोत्तम है और रात्रि भोजन के बाद दूध पीना सर्वोत्तम है।
द्वितीय नियम- कभी भी पानी घूँट -घूँट(सिप करके ) पीए
कभी भी एक सास में या लगातार पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि जिस तरह से गर्म चाय को चुस्की लेकर घूँट घूँट पीते हैं पानी भी ठी इसी तरह पीना चाहिए।
प्रश्न है कि ऐसा क्यों- इसका उत्तर देते हुए लिखते हैं कि हमारे मुख में लार बनती है जव हम घूँट भरकर पानी पीते हैं तो हमारी लार पानी में मिल जाती हैं लार मिला हुआ पानी हमारी पेट की अम्लता को समाप्त करके भोजन को पचने में मदत करता है।
किन्तु ऐसा न करने पर पिया हुआ पानी निरर्थक हो जाता है। अतः जब भी पानी पीए घूँट - घूँट करके पीए।
तृतीय नियम- कभी भी ठण्डा पानी नहीं पीना
फ्रिज , बर्फ, वाटरकूलर आदि किसी माध्यम से ठण्डा हुआ पानी कभी भी न पीए केवल मिट्टी के घड़े का पानी ही पीना चाहिए, वो भी केवल मई और जून माह में। ऐसा क्यों हमारे शरीर का ताप गर्म है जब हम ठंडा पानी पीते हैं तो शरीर को उस पानी को गर्म करने के लिए खून की उर्जा लेनी पड़ती है जिससे हमारी शरीर की उर्जा का अनावश्यक ही ह्रास होता है ऐसी स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है और शरीर मोटापा सहित अनावश्यक बिमारीयों का जन्म हो जाता है।
चतुर्थ नियम- सुबह उठते ही भर पेट पानी पीने की आदत डाले
महर्षि वाग्बट्ट जी कहते हैं कि सुबह ऊषापान अर्थात सूर्योदय से पूर्व उठकर 2-3 गिलास ताजे गुनगुने जल का सेवन करें। जब हम सुबह उठकर पानी पीते हैंं तो इससे हमारी आँत की दिवारों का मल पानी के साथ घुल जाता है और हमारे पेट में एकत्रित अम्ल न्यूट्रल होकर मलासय से बाहर निकल जाता है और हमारी आँत स्वच्छ हो जाती है जिससे शरीर में ताजगी का अनुभव होता है। और बहुत सारी बिमारीयों से सुरक्षा होती है।
अगर हम सभी इन चार नियमों का पालन करते हैं तो त्रिदोष के प्रकोप से सदैव सुरक्षित रहेंगे और कभी भी किसी भी दवा या डाक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
धन्यवाद
।।जय हिन्द, जय भारत, स्वस्थ भारत।।
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